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सरकार मस्त किसान पस्त

मेरा अपना नज़रिया
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सरकार मस्त किसान पस्त

डॉ० ह्रदेश चौधरी

“मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।” इसी भावना से लवरेज किसान जी तोड़ मेहनत इस उम्मीद के साथ करते हैं कि समय आने पर उनके घर में भी उम्मीदों के चिराग जलेंगे और अपनी बिटिया की शादी भी शान-ओ-शौकत से कर सकेगा। पर उनके अरमानों पर कुदरत की मार यूँ पड़ती है कि उनको अत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है। और जिस बिटिया के लिए अरमान सँजोये थे वही बिटिया अपने बापू की अर्थी को ले जाते हुये देखती है। कृषि प्रधान देश की विडम्बना तो देखिये करोड़पति नेताओं की संख्या तो बढ़ रही है और अन्नदाता साल-दर-साल, हाँफते हाँफते दम तोड़ने पर मजबूर होते जा रहे हैं।

फसल की कटाई का काम पूरा होने से पहले ही बेमौसम बारिश और ओलों से गेहूं, चना, जौ, सरसों, मसूर, सब्जियों तथा फलों की पकती फसलों को अपने आखों के सामने तहस-नहस होते देख किसानों की आखें सदमे से   फटी की फटी रह गईं और उन्हें आत्महत्या के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझता। किसान भली-भांति जानता है कि प्राकृतिक आपदा के वक़्त सरकार की तरफ से ऐसा कोई आश्वासन नहीं आएगा जो मरहम का काम कर सके । पीढ़ियों से देखते आ रहे हैं किसान, कि मुग़ल और अँग्रेजी शासन काल से आज तक उनकी दुर्दशा होती आ रही है और प्राकृतिक आपदा से फसलों को हुये नुकसान की भरपाई की कोई भी ऐसी कार्यप्रणाली सरकार द्वारा आज तक लागू नहीं की गयी जो कि किसान को विपरीत परिस्थितियों में राहत प्रदान कर सके। किसान की तो बस इतनी सी नियति रह गयी है कि बीज के कट्टे कंधे पर उठाना, खेतों में जमकर पसीना बहाना और अंत में काम के बोझ से झुकी कमर को लेकर जिंदगी गुजार देना। सरकार और प्रशासन दोनों ने समय रहते किसान की दिन प्रतिदिन  दयनीय होती स्थिति पर चिंतन मनन नहीं किया तो किसान यूँ ही आत्महत्या करने पर मजबूर होते रहेंगे और वो दिन दूर नहीं जब इस देश का नागरिक दाने-दाने के लिए मोहताज नज़र आएगा या फिर पहले की तरह अन्न को आयतित करना पड़ेगा। शायद इसी हश्र का इंतज़ार कहीं-न-कहीं सरकार और प्रशासन दोनों को हैं।

गौरतलव है कि सारी सरकारी रियायतें उद्योगपतियों और उनके उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए दी जाती हें यहा तक कि सरकार भूमि अधिग्रहण करके किसानों की उस जमीन को भी इन उद्योगपतियों को सौंप देती है जिससे वो अपने और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता था। एक तरफ उद्योगपतियों के लिए सरकार सस्ते से सस्ते दाम पर कर्ज़ उपलब्ध कराती है। वहीं दूसरी तरफ अन्नदाताओं के लिए न तो सस्ते दर पर कर्ज़ उपलब्ध कराया जाता है और न ही उनकी फसलों का बीमा कराया जाता है। इस सबके बावजूद उद्योगपति सरकारी कर्ज़ वापस करने में असमर्थता दिखाते हैं, तो उनके खिलाफ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं होती है। क्योंकि वो सरकार का मुँह पहले ही बंद कर चुके होते हैं। वहीं दूसरी तरफ बेबस किसान की कर्ज़ न दे पाने की स्थिति में  ज़मीन और घर दोनों की कुर्की करा दी जाती है। ग्रामदेवता की इस तपोभूमि पर ही उधयोगपतियों और किसानों के लिए दो तरह के कानून क्यों? उधयोगपति जहां रोजगार देने का दावा करते है वही खेती से किसान पूरे देश का पेट भरने के लिए अनाज मुहैया कराता है साथ ही गाँव के लोगों को रोजगार भी देता है फिर किसान के साथ ही सरकार दोयम दर्जे का व्यवहार क्यूँ करती है? ज्ञातव्य है कि किसान बड़ी बड़ी राजनैतिक पार्टियों को चंदा देने में असमर्थ होता है, वही उधयोगपति उनके लिए कुबेर का खज़ाना साबित होते है। हालांकि दिखाने के लिए सारी योजनाए किसानों के नाम किन्तु उनका लाभ उद्धोगपतियों को पहुंचाया जाता है। इस दोहरी नीति का दुष्परिणाम आखिर भोगना तो समाज को ही है क्योकि इस देश का अन्नदाता ही जब अन्न से महरूम रहेगा तो वो दूसरों का पेट कैसे भरेगा। अपनी लहलाती गेहूँ की बालियो और सरसों की बसंती बहार में अपना जीवन तलाशने वाले इस   किसान को चाह नहीं है कि वो शहर की चकाचौंध वाली ज़िंदगी गुजारे, बस उसे फिक्र है तो सिर्फ इतनी कि खुले आसमान के नीचे उसकी इस धन संपदा को किसी की नजर ना लग जाये। किसान की उसकी मेहनत का वाजिफ मूल्य और प्राकृतिक आपदा के वक़्त तात्कालिक राहत प्रदान करना सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी है पर क्या इस नैतिक ज़िम्मेदारी का निर्वहन राज्य और केंद्र की सरकारें ईमानदारी से कर रही हैं।

इन सभी के मद्देनजर विचारणीय पहलू ये है कि सरकार की उपेक्षा और कुदरत की मार से त्रस्त किसान आखिर जाय तो जाय कहाँ ? कही उसके मन के किसी कौने में ये बात घर कर गयी कि उसे अपने ये पुश्तैनी काम छोडकर दूसरा कोई और धन्धा करना है तो इस कृषि प्रधान देश को लेने के देने पड़ जायेंगे और यदि हकीकत में ऐसा हुआ तो अन्न की धन सम्पदा से परिपूर्ण ये कुनवा तबाह हो जाएगा। यह ज़िम्मेदारी हम सबकी है कि अपने इस अन्नदाता को न्याय दिलाने में सबकी सहभागिता सुनिश्चित हो और इस देश का किसान खुशहाल हो। साथ ही  जय जवान जय किसान का नारा भी फलीभूत हो।

(लेखिका आराधना संस्था की महासचिव हैं)

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