Menu
blogid : 20622 postid : 845503

महिला सुरक्षा सिर्फ चुनावी मुद्दा

मेरा अपना नज़रिया
मेरा अपना नज़रिया
  • 13 Posts
  • 20 Comments

महिला सुरक्षा सिर्फ चुनावी मुद्दा

डॉ हृदेश चौधरी

कोई भी मुल्क यश के शिखर पर तब तक नहीं पहुँच सकता जब तक उसकी महिलाएं सुरक्षित नहीं है। दिल्ली का चुनाव देश की अस्मिता का चुनाव है जिसका असर पूरे देश पर पड़ता है। चुनाव के बस चन्द दिन बाकी रह गए हैं चुनावी सरगर्मियों में राजनीतिक दलों के बीच काफी गहमा-गहमी चल रही है भाजपा, काँग्रेस और आप सभी दल आरोप प्रत्यारोप, बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े वायदों  की राजनीति कर रहे हैं, दिल्ली में ऐसी अनेक समस्याएँ हैं जो इस विधानसभा चुनाव में मुद्दे तो बन रहे हैं साथ ही महंगाई, भ्रष्टाचार और दिल्ली के स्थानीय मुद्दों जैसे बिजली की बढ़ती दरें, पानी और आवास की कमी को लेकर एक दूसरे पर हमला बोलते हुये मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की जा रही है। किन्तु ऐसे में महिला सुरक्षा सिर्फ नाममात्र के लिए चुनावी ऐजेंडे में शामिल होती  दिखाई दे रही है जबकि महिला सुरक्षा इस चुनाव में एक अहम मुद्दा होना चाहिए क्योकि समाज के लिए शीर्ष पर बैठी महिला से लेकर सड़क पर एवं झुग्गी झोपड़ी में निवास करने वाली हर महिला महत्वपूर्ण है और इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में होनी चाहिए न कि सिर्फ मेनिफेस्टो को शोभा बढ़ाने के लिए। देश की राजधानी में बलात्कार और गेगरेप जैसी घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। साथ ही बसों, मेट्रो और सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं से छेड़-छाड़ बदस्तूर जारी है। इसलिए आज दिल्ली की जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजधानी में महिलाएं सुरक्षित कैसे रहें? इस बुनियादी जरूरत को लेकर पूरा राष्ट्र चिंतित हैं कि आखिर हमसे चूक कहाँ हो रही है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरों के आकडों के अनुसार भारत में प्रति लाख महिला आबादी में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 52.2 प्रतिशत है जबकि दिल्ली में आकड़ा 146.79 का है। सन 2012 में जब नई दिल्ली में चलती बस में सामूहिक बलात्कार हुआ उसके बाद से भारत की राजधानी को बार-बार ‘रेप कैपिटल’ कहा गया। ये ऐसा वक्त है जब राजनीतिक दलों को बड़े-बड़े वायदे करने के बजाए देश की राजधानी को  महिलाओं के प्रति होने वाले जघन्य अपराधों से  मुक्त करायें और दिल्ली की जनता में विश्वास जगाएँ  कि उनकी पार्टी महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने को तैयार है।

हालांकि केंद्र की मोदी सरकार ने देश के 66वें गणतन्त्र दिवस को प्रतीकात्मक रूप में नारी शक्ति को समर्पित दिखाया है  जो कि इस बात का सूचक है कि केंद्र सरकार महिलाओं को लेकर गंभीर है। लेकिन मुख्य मुद्दा यह है कि महिलाओं को इस तरह के प्रतीकों से आगे निकालकर क्या उस जगह ले जाया जा रहा है जहां उसकी स्वीकार्यता सर्वत्र हो और हर जगह स्वयं को वह पूर्ण रूप से सुरक्षित महसूस कर सके। महिलाओं में व्याप्त असुरक्षा उसके सम्पूर्ण विकास और सफलता में बाधक है जो कि न सिर्फ समाज बल्कि इस देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है। जिस देश में नारियों को देवी तुल्य समझा जाता रहा हो और नारी शक्ति के रूप में पूजा जाता हो ऐसे देश में महिलाओं की सुरक्षा का न होना अपने आप में एक विडम्बना ही तो है। क्या महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचारों एवं वीभत्स अपराधों को रोकने के लिए समाज एवं सरकारों का कोई उत्तरदायित्व नहीं हैं? क्या महिलाएं सिर्फ प्रतीक के रूप में ही नारी शक्ति का प्रदर्शन कर पाएँगी? फिलहाल जो माहौल है उससे तो सिर्फ ऐसा ही होता नज़र आ रहा है। इस मुद्दे पर सभी राजनैतिक पार्टियां महिला सुरक्षा की बात तो गाहे-बगाहे कर रही हैं पर इसमें कितनी संजीदगी है, इस बात पर आम लोग एतबार नहीं कर पा रहे हैं। सभी के दिलों-दिमाग में यह प्रश्न बने हुए है कि क्या महिला सुरक्षा पर किए गए वायदे हकीकत में तब्दील होंगे? आखिरकार महिला सुरक्षा पर यह सियासत कब गंभीर होगी। दिल्ली की जनता   इस बात को भी परख रही है कि भाजपा और आम आदमी पार्टी ने जिन महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, क्या वो महिलाओं की समस्याओं और उनकी जरूरतों के लिए ज्यादा संवेदनशील हो सकती है।

महिला सुरक्षा के मद्दे नज़र औद्यौगिक संगठन ऐसोचैम ने भी मांग की है कि महिलाओं की सुरक्षा सियासी दलों के ऐजेंडे में प्रमुखता से शामिल होनी चाहिए। हालांकि इस समय सभी टीवी-न्यूज़ चैनल चुनावी दंगल बने हुए हैं। किन्तु आरोप-प्रत्यारोप की बहस में महिला सुरक्षा का मुद्दा गायब हैं। जबकि वक्त बदलने के साथ औरत होने का अर्थ बदला, महिला का व्यक्तित्व परिमार्जित हुआ, महिला बेहतर जीवन जीने के सपने देखने लगी इन सबके बावजूद सरकार के नुमाइंदे सुरक्षित वातावरण देने के लिए प्रतिवद्ध नहीं दिखे। बहुत सी नीतियाँ और योजनाएँ बनीं परंतु उनपर कारगर अमल नहीं हुआ। जब कोई बड़ी घटना होती है तो राष्ट्रीय महिला आयोग या सामाजिक संगठनों के आक्रोश, प्रदर्शन, धरना, रैलियों के बदले में सरकार की तरफ से सांत्वना रूपी समिति गठित कर न्याय देने की बात कही जाती है। यद्यापि राजधानी में चुनावी माहौल पूरे चरम पर है। जिसका असर देश की आम जनता पर दिखाई देता है। अब महिलाओं की निगाह सभी दलों पर टिकी हुयी है कि चुनाव के बाद कौन महिलाओं के लिए सुरक्षित ज़मीं देने में कारगर सिद्ध होगा।

आज़ादी के इतने  साल बाद भी महिलाओं अपने देश में ही महफूज़ नहीं है। इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य क्या होगा। जिस निर्भया कांड के समय इस देश की जनता ने उस वक्त की सरकारों को हिला कर रख दिया था और ऐसा लगने लगा था की मानों अब महिलाओं की सुरक्षा के साथ इस देश में कोई अप्रिय और अनहोनी घटना नहीं होगी लेकिन वक्त बदलने के साथ महिलाओं का यह भरोसा भी सरकारों से उठने लगा है।  ऐसा लगता हैं की मानो महिला सुरक्षा बस एक मुद्दा है जो इस चुनावी बारिश में होने वाली ओलाबृष्टि की तरह है जिसकी बर्फ बारिश के खत्म  होने के साथ ही अपना अस्तित्व खो देगी। महिला  सुरक्षा का  मुद्दा भी चुनाव अभियान खत्म  होने के साथ खत्म होता नज़र आता है। आज जब दिल्ली का चुनाव होने को है और प्रचार ज़ोरों पर है, आम जनता को  अपना मत अब ऐसे लोगों को देना है जो महिला सुरक्षा के मुद्दे पर पूरी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ काम करे। ताकि आज महिला सुरक्षा की बात जो कि सियासत के लिए वोट हासिल करने का जरिया बनी हुयी है वह हकीकत में भी महिलाओं के अंदर सुरक्षा का भाव जाग्रत करे।

(लेखिका आराधना संस्था की महासचिव हैं)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh